सोमवार, 27 जुलाई 2020

कोरोना महामारी को लेकर एक सरकारी अधिकारी ने अपनी कलम से क्या खूब लिखा।

मैंने संवेदनाओ को मरते देखा है, मैंने अस्पताल में भावनाओ को मरते देखा है। माँ मर जाए तो बेटे के आंखों में आँसू नही है, क्योकि वो कोरोना पीड़ित है। ओर बेेटा मर जाए तो, माँ के आंखों में आंसू नही है, क्योंकि वह कोरोना पीड़ित है। माँ मर जाए तो बेटे के आंखों में आँसू नही है, क्योकि वो कोरोना पीड़ित है। ओर बेेटा मर जाए तो, माँ के आंखों में आंसू नही है, क्योंकि वह कोरोना पीड़ित है। क्या समय आ गया है ? मैंने आँखों से देखा है, मैंने अस्पताल में भावनाओ को मरते देखा है। वह तड़प तड़प कर मर गया , वह बिलख बिलख कर मर गया। वह तड़प तड़प कर मर गया , वह बिलख बिलख कर मर परिजनों से कोई संपर्क नही, वह रोते रोते मर गया। भर्ती होने आया था,वे तब परिजन आये थे साथ, मोबाइल नंबर गलत लिखाकर नाता तोड़ कर गये थे साथ। भर्ती होने आया था,वे तब परिजन आये थे साथ, मोबाइल नंबर गलत लिखाकर नाता तोड़ कर गये थे साथ। मैंने कोरोना से रिश्ते तार तार होते देखा है, मैंने अस्पताल में भावनाओ को मरते देखा है। कुछ लोग अस्पताल प्रसाशन पर आरोप लगते, कुछ लोग डॉक्टरों को शैतान बताते, कहने दो लोगो का क्या, बातेे तो बनाएंगे ही, अपनी गलती छुपाकर दुसरो को मूर्ख बनायेगे ही, कहने दो लोगो का क्या, बातेे तो बनाएंगे ही, अपनी गलती छुपाकर दुसरो को मूर्ख बनायेगे ही, पर हक़ीक़त कुछ और ही है, बताना बहुत जरूरी है। मैं ठहरा मन का कवि, यही मेरी मजबूरी है। मैं खाकी वर्दी वाला हूँ। मैंने मेरी आँखो से देखा है, मैंने अस्पताल में भावनाओ को मरते देखा है। मृतक की मृत्यु के बाद कुछ लोग अस्पताल आकर ऐतराज जताते है। डॉक्टरों कि कमी से मर गया वह उसका इलाज नही हुआ, दुनिया को बताने पर अंतिम संस्कार के लिए उस मुर्दे को छोड़कर पुलिस के भरोसे चले जाते है। हम कह कहकर विनंती उनसे थक जाते है, मैंने शमशान घाट में बिना परिजनों के मुर्दे को जलते देखा है। मैंने अस्पताल में भावनाओं को मरते देखा है । मैंने अस्पताल में भावनाओं को मरते देखा है ।

गुरुवार, 16 जुलाई 2020

मर्डर या एनकाउटर ?

            विकास दुबे जिसे विकास पंडित के नाम से भी जाना है वो हिस्ट्रीशीटर उत्तर प्रदेश कानपुर जिला में गैगस्टर से नेता बना था। पहला अपराधिक मामला १९९० के दशक से सुरुआत हुई और २०२० आते -आते उनके नाम ६० से अधिक आपराधिक मामले दर्जे हो गए। मिडिया के अनुसार अपने राजनेतिक सम्बन्ध के कारण दुबे को अधिकांश हत्याओ मे बरी कर दिया गया, बावजूद कई गवाहो की मौजुदगी है। दुबे को विकास पंडित के नाम से भी जाना जाता था , जिसका नाम १९९९ की एक फिल्म अर्जुन पंडित के  शिर्षक चरित्र पर पड़ा। 
              वह चर्चा जब आया तब दुबे और उनके लोगो को गिरफ्तार करने के प्रयास के दौरान एक पुलिस अधिक्षक (DSP) सहित आठ पुलिसकर्मी मारे गए और सात पुलिसकर्मी घायल हो गए थे। शव परीक्षण रिपोर्ट मे पता चला की DSP की बेहरमी से हत्या की गई थी। कानपूर के IGP ने कहा कि कम कम ६० लोगो ने पुलिस पर घात लगाकर हमला किया। कॉल रिकार्ड से पता चला कि दुर्ब कई पुलिस वालो के संपर्क में था, जिन्होंने उसे जानकारी की। इसके बाद प्रशासन ने उसके घर को उसी के बुलडोजर से ढहा दिया, तब दुबे और उनके साथियो को ९ जुलाई २०२० को मध्यप्रदेश के उज्जैन महाकाल मंदिर मे पकड़ा गया।
          जब से १५ सवाल जहा UP पुलिस को