रविवार, 23 अगस्त 2020

तीज री बधाई

तीज री तीजणिंया ने छोटी मोटी बीनणियां ने माता बेंना भोजायां ने बेली दोस्ता री लुगाया ने बालद भाट कावड़िया ने छाणां चुगती डावङिया ने तंबाकू सूंघती डोकरिया ने हींडा हींडती छोकरीयां ने बस री सवारियां ने नयी नवेली बवारियां ने छोटी मोटी सगलां ने छाती रोंधती धणियों री धणियोंणियो ने तीज री घणी घणी बधाई ll

गणपति बाप्पा आरती

मंगलवार, 18 अगस्त 2020

.. कान की व्यथा..

👂🏻...कान की व्यथा...👂🏻 मैं हूँ कान... हम दो हैं... जुड़वां भाई... लेकिन हमारी किस्मत ही ऐसी है कि आज तक हमने एक दूसरे को देखा तक नहीं 😪... पता नहीं.. कौन से श्राप के कारण हमें विपरित दिशा में चिपका कर भेजा गया है 😠... दु:ख सिर्फ इतना ही नहीं है... हमें जिम्मेदारी सिर्फ सुनने की मिली है.. गालियाँ हों या तालियाँ.., अच्छा हो या बुरा.., सब हम ही सुनते हैं... धीरे धीरे हमें "खूंटी" समझा जाने लगा... चश्मे का बोझ डाला गया, फ्रेम की डण्डी को हम पर फँसाया गया... ये दर्द सहा हमने... क्यों भाई..??? चश्मे का मामला आंखो का है तो हमें बीच में घसीटने का मतलब क्या है...???!! हम बोलते नहीं तो क्या हुआ, सुनते तो हैं ना... हर जगह बोलने वाले ही क्यों आगे रहते है....??? बचपन में पढ़ाई में किसी का दिमाग काम न करे तो मास्टर जी हमें ही मरोड़ते हैं 😡... जवान हुए तो आदमी,औरतें सबने सुन्दर सुन्दर लौंग, बालियाँ, झुमके आदि बनवाकर हम पर ही लटकाये...!!! छेदन हमारा हुआ, और तारीफ चेहरे की ...! और तो और... श्रृंगार देखो... आँखों के लिए काजल... मुँह के लिए क्रीमें... होठों के लिए लिपस्टिक... हमने आज तक कुछ माँगा हो तो बताओ... कभी किसी कवि ने, शायर ने कान की कोई तारीफ की हो तो बताओ... इनकी नजर में आँखे, होंठ, गाल, ये ही सब कुछ है... हम तो जैसे किसी मृत्युभोज की बची खुची दो पूड़ियाँ हैं.., जिसे उठाकर चेहरे के साइड में चिपका दिया बस... और तो और, कई बार बालों के चक्कर में हम पर भी कट लगते हैं ... हमें डिटाॅल लगाकर पुचकार दिया जाता है... बातें बहुत सी हैं, किससे कहें...??? कहते है दर्द बाँटने से मन हल्का हो जाता है... आँख से कहूँ तो वे आँसू टपकाती हैं...नाक से कहूँ तो वो बहाता है... मुँह से कहूँ तो वो हाय हाय करके रोता है... और बताऊँ... पण्डित जी का जनेऊ, टेलर मास्टर की पेंसिल, मिस्त्री की बची हुई गुटखे की पुड़िया सब हम ही सम्भालते हैं... और आजकल ये नया-नया "मास्क" का झंझट भी हम ही झेल रहे हैं... कान नहीं जैसे पक्की खूँटियाँ हैं हम... और भी कुछ टाँगना, लटकाना हो तो ले आओ भाई... तैयार हैं हम दोनों भाई...!¡! 😜😊😅🤫😷 🙏🏻🙏🏻

सोमवार, 27 जुलाई 2020

कोरोना महामारी को लेकर एक सरकारी अधिकारी ने अपनी कलम से क्या खूब लिखा।

मैंने संवेदनाओ को मरते देखा है, मैंने अस्पताल में भावनाओ को मरते देखा है। माँ मर जाए तो बेटे के आंखों में आँसू नही है, क्योकि वो कोरोना पीड़ित है। ओर बेेटा मर जाए तो, माँ के आंखों में आंसू नही है, क्योंकि वह कोरोना पीड़ित है। माँ मर जाए तो बेटे के आंखों में आँसू नही है, क्योकि वो कोरोना पीड़ित है। ओर बेेटा मर जाए तो, माँ के आंखों में आंसू नही है, क्योंकि वह कोरोना पीड़ित है। क्या समय आ गया है ? मैंने आँखों से देखा है, मैंने अस्पताल में भावनाओ को मरते देखा है। वह तड़प तड़प कर मर गया , वह बिलख बिलख कर मर गया। वह तड़प तड़प कर मर गया , वह बिलख बिलख कर मर परिजनों से कोई संपर्क नही, वह रोते रोते मर गया। भर्ती होने आया था,वे तब परिजन आये थे साथ, मोबाइल नंबर गलत लिखाकर नाता तोड़ कर गये थे साथ। भर्ती होने आया था,वे तब परिजन आये थे साथ, मोबाइल नंबर गलत लिखाकर नाता तोड़ कर गये थे साथ। मैंने कोरोना से रिश्ते तार तार होते देखा है, मैंने अस्पताल में भावनाओ को मरते देखा है। कुछ लोग अस्पताल प्रसाशन पर आरोप लगते, कुछ लोग डॉक्टरों को शैतान बताते, कहने दो लोगो का क्या, बातेे तो बनाएंगे ही, अपनी गलती छुपाकर दुसरो को मूर्ख बनायेगे ही, कहने दो लोगो का क्या, बातेे तो बनाएंगे ही, अपनी गलती छुपाकर दुसरो को मूर्ख बनायेगे ही, पर हक़ीक़त कुछ और ही है, बताना बहुत जरूरी है। मैं ठहरा मन का कवि, यही मेरी मजबूरी है। मैं खाकी वर्दी वाला हूँ। मैंने मेरी आँखो से देखा है, मैंने अस्पताल में भावनाओ को मरते देखा है। मृतक की मृत्यु के बाद कुछ लोग अस्पताल आकर ऐतराज जताते है। डॉक्टरों कि कमी से मर गया वह उसका इलाज नही हुआ, दुनिया को बताने पर अंतिम संस्कार के लिए उस मुर्दे को छोड़कर पुलिस के भरोसे चले जाते है। हम कह कहकर विनंती उनसे थक जाते है, मैंने शमशान घाट में बिना परिजनों के मुर्दे को जलते देखा है। मैंने अस्पताल में भावनाओं को मरते देखा है । मैंने अस्पताल में भावनाओं को मरते देखा है ।

गुरुवार, 16 जुलाई 2020

मर्डर या एनकाउटर ?

            विकास दुबे जिसे विकास पंडित के नाम से भी जाना है वो हिस्ट्रीशीटर उत्तर प्रदेश कानपुर जिला में गैगस्टर से नेता बना था। पहला अपराधिक मामला १९९० के दशक से सुरुआत हुई और २०२० आते -आते उनके नाम ६० से अधिक आपराधिक मामले दर्जे हो गए। मिडिया के अनुसार अपने राजनेतिक सम्बन्ध के कारण दुबे को अधिकांश हत्याओ मे बरी कर दिया गया, बावजूद कई गवाहो की मौजुदगी है। दुबे को विकास पंडित के नाम से भी जाना जाता था , जिसका नाम १९९९ की एक फिल्म अर्जुन पंडित के  शिर्षक चरित्र पर पड़ा। 
              वह चर्चा जब आया तब दुबे और उनके लोगो को गिरफ्तार करने के प्रयास के दौरान एक पुलिस अधिक्षक (DSP) सहित आठ पुलिसकर्मी मारे गए और सात पुलिसकर्मी घायल हो गए थे। शव परीक्षण रिपोर्ट मे पता चला की DSP की बेहरमी से हत्या की गई थी। कानपूर के IGP ने कहा कि कम कम ६० लोगो ने पुलिस पर घात लगाकर हमला किया। कॉल रिकार्ड से पता चला कि दुर्ब कई पुलिस वालो के संपर्क में था, जिन्होंने उसे जानकारी की। इसके बाद प्रशासन ने उसके घर को उसी के बुलडोजर से ढहा दिया, तब दुबे और उनके साथियो को ९ जुलाई २०२० को मध्यप्रदेश के उज्जैन महाकाल मंदिर मे पकड़ा गया।
          जब से १५ सवाल जहा UP पुलिस को 

रविवार, 29 मार्च 2020

महान लेखक टालस्टाय की एक कहानी है - "शर्त "


महान लेखक टालस्टाय की एक कहानी है - "शर्त " इस कहानी में दो मित्रो में आपस मे शर्त लगती है कि, यदि उसने 1 माह एकांत में बिना किसी से मिले,बातचीत किये एक कमरे में बिता देता है, तो उसे 10 लाख नकद वो देगा । इस बीच, यदि वो शर्त पूरी नहीं करता, तो वो हार जाएगा । पहला मित्र ये शर्त स्वीकार कर लेता है । उसे दूर एक खाली मकान में बंद करके रख दिया जाता है । बस दो जून का भोजन और कुछ किताबें उसे दी गई । उसने जब वहां अकेले रहना शुरू किया तो 1 दिन 2 दिन किताबो से मन बहल गया फिर वो खीझने लगा । उसे बताया गया था कि थोड़ा भी बर्दाश्त से बाहर हो तो वो घण्टी बजा के संकेत दे सकता है और उसे वहां से निकाल लिया जाएगा । जैसे जैसे दिन बीतने लगे उसे एक एक घण्टे युगों से लगने लगे । वो चीखता, चिल्लाता लेकिन शर्त का खयाल कर बाहर किसी को नही बुलाता । वोअपने बाल नोचता, रोता, गालियां देता तड़फ जाता,मतलब अकेलेपन की पीड़ा उसे भयानक लगने लगी पर वो शर्त की याद कर अपने को रोक लेता । कुछ दिन और बीते तो धीरे धीरे उसके भीतर एक अजीब शांति घटित होने लगी।अब उसे किसी की आवश्यकता का अनुभव नही होने लगा। वो बस मौन बैठा रहता। एकदम शांत उसका चीखना चिल्लाना बंद हो गया। इधर, उसके दोस्त को चिंता होने लगी कि एक माह के दिन पर दिन बीत रहे हैं पर उसका दोस्त है कि बाहर ही नही आ रहा है । माह के अब अंतिम 2 दिन शेष थे,इधर उस दोस्त का व्यापार चौपट हो गया वो दिवालिया हो गया।उसे अब चिंता होने लगी कि यदि उसके मित्र ने शर्त जीत ली तो इतने पैसे वो उसे कहाँ से देगा । वो उसे गोली मारने की योजना बनाता है और उसे मारने के लिये जाता है । जब वो वहां पहुँचता है तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नही रहता । वो दोस्त शर्त के एक माह के ठीक एक दिन पहले वहां से चला जाता है और एक खत अपने दोस्त के नाम छोड़ जाता है । खत में लिखा होता है- प्यारे दोस्त इन एक महीनों में मैंने वो चीज पा ली है जिसका कोई मोल नही चुका सकता । मैंने अकेले मे रहकर असीम शांति का सुख पा लिया है और मैं ये भी जान चुका हूं कि जितनी जरूरतें हमारी कम होती जाती हैं उतना हमें असीम आनंद और शांति मिलती है मैंने इन दिनों परमात्मा के असीम प्यार को जान लिया है । इसीलिए मैं अपनी ओर से यह शर्त तोड़ रहा हूँ अब मुझे तुम्हारे शर्त के पैसे की कोई जरूरत नही। इस उद्धरण से समझें कि लॉकडाउन के इस परीक्षा की घड़ी में खुद को झुंझलाहट,चिंता और भय में न डालें,उस परमात्मा की निकटता को महसूस करें और जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने का प्रयत्न कीजिये, इसमे भी कोई अच्छाई होगी यह मानकर सब कुछ भगवान को समर्पण कर दें। विश्वास मानिए अच्छा ही होगा । लॉक डाउन का पालन करे।स्वयं सुरक्षित रहें,परिवार,समाज और राष्ट्र को सुरक्षित रखें। लॉक डाउन के बाद जी तोड़ मेहनत करना है,स्वयं,परिवार और राष्ट्र के लिए...देश की गिरती अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए👍🏻👍🏻👍🏻सभी को🙏🏻🙏🏻🙏🏻 लेखक - नयना पटेल