म्हारो मारवाड़
समाचार , कहानिया , चुटकले , मारवाड़ी चुटकले और राजस्थानी गीत , भजन , वीडियो ........
सोमवार, 7 सितंबर 2020
रविवार, 6 सितंबर 2020
रविवार, 23 अगस्त 2020
तीज री बधाई
तीज री तीजणिंया ने
छोटी मोटी बीनणियां ने
माता बेंना भोजायां ने
बेली दोस्ता री लुगाया ने
बालद भाट कावड़िया ने
छाणां चुगती डावङिया ने
तंबाकू सूंघती डोकरिया ने
हींडा हींडती छोकरीयां ने
बस री सवारियां ने
नयी नवेली बवारियां ने
छोटी मोटी सगलां ने
छाती रोंधती धणियों री धणियोंणियो ने
तीज री घणी घणी बधाई ll
मंगलवार, 18 अगस्त 2020
.. कान की व्यथा..
👂🏻...कान की व्यथा...👂🏻
मैं हूँ कान... हम दो हैं... जुड़वां भाई...
लेकिन हमारी किस्मत ही ऐसी है
कि आज तक हमने एक दूसरे को देखा तक नहीं 😪...
पता नहीं.. कौन से श्राप के कारण
हमें विपरित दिशा में चिपका कर
भेजा गया है 😠...
दु:ख सिर्फ इतना ही नहीं है...
हमें जिम्मेदारी सिर्फ सुनने की मिली है..
गालियाँ हों या तालियाँ..,
अच्छा हो या बुरा..,
सब हम ही सुनते हैं...
धीरे धीरे हमें "खूंटी" समझा जाने
लगा...
चश्मे का बोझ डाला गया,
फ्रेम की डण्डी को हम पर फँसाया
गया...
ये दर्द सहा हमने...
क्यों भाई..???
चश्मे का मामला आंखो का है
तो हमें बीच में घसीटने का
मतलब क्या है...???!!
हम बोलते नहीं तो क्या हुआ,
सुनते तो हैं ना...
हर जगह बोलने वाले ही क्यों
आगे रहते है....???
बचपन में पढ़ाई में किसी का दिमाग
काम न करे तो
मास्टर जी हमें ही मरोड़ते हैं 😡...
जवान हुए तो
आदमी,औरतें सबने सुन्दर सुन्दर लौंग,
बालियाँ, झुमके आदि बनवाकर
हम पर ही लटकाये...!!!
छेदन हमारा हुआ,
और तारीफ चेहरे की ...!
और तो और...
श्रृंगार देखो... आँखों के लिए काजल...
मुँह के लिए क्रीमें...
होठों के लिए लिपस्टिक...
हमने आज तक कुछ माँगा हो तो
बताओ...
कभी किसी कवि ने, शायर ने
कान की कोई तारीफ की हो तो बताओ...
इनकी नजर में आँखे, होंठ, गाल,
ये ही सब कुछ है...
हम तो जैसे किसी मृत्युभोज की
बची खुची दो पूड़ियाँ हैं..,
जिसे उठाकर चेहरे के साइड में
चिपका दिया बस...
और तो और,
कई बार बालों के चक्कर में
हम पर भी कट लगते हैं ...
हमें डिटाॅल लगाकर पुचकार दिया
जाता है...
बातें बहुत सी हैं, किससे कहें...???
कहते है दर्द बाँटने से मन हल्का
हो जाता है...
आँख से कहूँ तो वे आँसू टपकाती
हैं...नाक से कहूँ तो वो बहाता है...
मुँह से कहूँ तो वो हाय हाय करके
रोता है...
और बताऊँ...
पण्डित जी का जनेऊ,
टेलर मास्टर की पेंसिल,
मिस्त्री की बची हुई गुटखे की पुड़िया
सब हम ही सम्भालते हैं...
और आजकल ये नया-नया "मास्क"
का झंझट भी हम ही झेल रहे हैं...
कान नहीं जैसे पक्की खूँटियाँ हैं हम...
और भी कुछ टाँगना, लटकाना हो
तो ले आओ भाई...
तैयार हैं हम दोनों भाई...!¡!
😜😊😅🤫😷 🙏🏻🙏🏻
शुक्रवार, 31 जुलाई 2020
सोमवार, 27 जुलाई 2020
कोरोना महामारी को लेकर एक सरकारी अधिकारी ने अपनी कलम से क्या खूब लिखा।
मैंने संवेदनाओ को मरते देखा है,
मैंने अस्पताल में भावनाओ को मरते देखा है।
माँ मर जाए तो बेटे के आंखों में आँसू नही है,
क्योकि वो कोरोना पीड़ित है।
ओर बेेटा मर जाए तो,
माँ के आंखों में आंसू नही है,
क्योंकि वह कोरोना पीड़ित है।
माँ मर जाए तो बेटे के आंखों में आँसू नही है,
क्योकि वो कोरोना पीड़ित है।
ओर बेेटा मर जाए तो,
माँ के आंखों में आंसू नही है,
क्योंकि वह कोरोना पीड़ित है।
क्या समय आ गया है ?
मैंने आँखों से देखा है,
मैंने अस्पताल में भावनाओ को मरते देखा है।
वह तड़प तड़प कर मर गया ,
वह बिलख बिलख कर मर गया।
वह तड़प तड़प कर मर गया ,
वह बिलख बिलख कर मर
परिजनों से कोई संपर्क नही,
वह रोते रोते मर गया।
भर्ती होने आया था,वे तब परिजन आये थे साथ,
मोबाइल नंबर गलत लिखाकर नाता तोड़ कर गये थे साथ।
भर्ती होने आया था,वे तब परिजन आये थे साथ,
मोबाइल नंबर गलत लिखाकर नाता तोड़ कर गये थे साथ।
मैंने कोरोना से रिश्ते तार तार होते देखा है,
मैंने अस्पताल में भावनाओ को मरते देखा है।
कुछ लोग अस्पताल प्रसाशन पर आरोप लगते,
कुछ लोग डॉक्टरों को शैतान बताते,
कहने दो लोगो का क्या,
बातेे तो बनाएंगे ही,
अपनी गलती छुपाकर दुसरो को मूर्ख बनायेगे ही,
कहने दो लोगो का क्या,
बातेे तो बनाएंगे ही,
अपनी गलती छुपाकर दुसरो को मूर्ख बनायेगे ही,
पर हक़ीक़त कुछ और ही है,
बताना बहुत जरूरी है।
मैं ठहरा मन का कवि,
यही मेरी मजबूरी है।
मैं खाकी वर्दी वाला हूँ।
मैंने मेरी आँखो से देखा है,
मैंने अस्पताल में भावनाओ को मरते देखा है।
मृतक की मृत्यु के बाद कुछ लोग अस्पताल आकर ऐतराज जताते है।
डॉक्टरों कि कमी से मर गया वह उसका इलाज नही हुआ,
दुनिया को बताने पर अंतिम संस्कार के लिए उस मुर्दे को छोड़कर पुलिस के भरोसे चले जाते है।
हम कह कहकर विनंती उनसे थक जाते है,
मैंने शमशान घाट में बिना परिजनों के मुर्दे को जलते देखा है।
मैंने अस्पताल में भावनाओं को मरते देखा है ।
मैंने अस्पताल में भावनाओं को मरते देखा है ।
गुरुवार, 16 जुलाई 2020
मर्डर या एनकाउटर ?
विकास दुबे जिसे विकास पंडित के नाम से भी जाना है वो हिस्ट्रीशीटर उत्तर प्रदेश कानपुर जिला में गैगस्टर से नेता बना था। पहला अपराधिक मामला १९९० के दशक से सुरुआत हुई और २०२० आते -आते उनके नाम ६० से अधिक आपराधिक मामले दर्जे हो गए। मिडिया के अनुसार अपने राजनेतिक सम्बन्ध के कारण दुबे को अधिकांश हत्याओ मे बरी कर दिया गया, बावजूद कई गवाहो की मौजुदगी है। दुबे को विकास पंडित के नाम से भी जाना जाता था , जिसका नाम १९९९ की एक फिल्म अर्जुन पंडित के शिर्षक चरित्र पर पड़ा।
वह चर्चा जब आया तब दुबे और उनके लोगो को गिरफ्तार करने के प्रयास के दौरान एक पुलिस अधिक्षक (DSP) सहित आठ पुलिसकर्मी मारे गए और सात पुलिसकर्मी घायल हो गए थे। शव परीक्षण रिपोर्ट मे पता चला की DSP की बेहरमी से हत्या की गई थी। कानपूर के IGP ने कहा कि कम कम ६० लोगो ने पुलिस पर घात लगाकर हमला किया। कॉल रिकार्ड से पता चला कि दुर्ब कई पुलिस वालो के संपर्क में था, जिन्होंने उसे जानकारी की। इसके बाद प्रशासन ने उसके घर को उसी के बुलडोजर से ढहा दिया, तब दुबे और उनके साथियो को ९ जुलाई २०२० को मध्यप्रदेश के उज्जैन महाकाल मंदिर मे पकड़ा गया।
जब से १५ सवाल जहा UP पुलिस को
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